तुम मिले तो लगा मुझे ऐसे,
पिछले जन्म की बिछड़ी मेरी रूह मिली हो मुझे जैसे
तुम मिले तो लगा मुझे ऐसे,
पिछले जन्म की बिछड़ी मेरी रूह मिली हो मुझे जैसे
इक झलक जो मुझे आज तेरी मिल गयी मुझे
फिर से आज जीने की वजह मिल गयी
क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
क्या तिरे आशिक़ हुए थे दर्द-ओ-ग़म खाने को हम
*खामोश चहरे पर*
*हजारो पहरे होते है,*
*हँसती आँखों में भी*
*जख्म गहरे होते है,*
*जिनसे अक्सर*
*रूठ जाते है हम,*
*असल में उनसे ही*
*रिश्ते ज्यादा गहरे होते है .*
ना तोल मेरी मोहब्बत को अपनी दिल्लगी से,
देख कर मेरी चाहत को अक्सर तराजू टूट जाते हैं
सुन कर ग़ज़ल मेरी,
वो अंदाज़ बदल कर बोले,
कोई छीनो कलम इससे,
ये तो जान ले रहा है…….!!
अपने सिवा बताओ कभी कुछ मिला भी है उसे..
हज़ार बार ली हैं उसने मेरे दिल की तलाशियाँ!
उसने पूछा, मुझे पाने के लिये किस हद तक जा सकते हो ?
मैंने कहा कि अगर हद ही पार करनी होती
तो तुम्हें कब का पा लिया होता।
बाज़ारों की चहल पहल से रौशन है
इन आँखों में मंदिर जैसी शाम कहाँ…
उन्हें ये खौफ की हर बात मुझसे कह डाली ..
मुझे ये वहम की कोई ख़ास बात बाकी है …